ताजमहल से जुड़े फैक्ट्स और शाहजहां मुमताज की प्रेम कहानी

 नमस्कार दोस्तों आप सभी का स्वागत है हमारे दि नॉलेज स्पेक्ट्रम ब्लॉक पोस्ट में आज इस पोस्ट के जरिए हम बात करने वाले हैं ताजमहल से रिलेटेड फैक्टस् के बारे में और शाहजहां व मुमताज से जुड़ी प्रेम कहानी के बारे में तो चलिए हमारी पोस्ट के साथ बने रहे और जानते हैं ताजमहल के बारे में--

Tajmahal ki khani


1.ताजमहल के बारे मे एक नजर मे :-

इण्डिया के शहर आगरा में मुगल एंपायर के आर्किटेक्ट का एक ऐसा शाहकार मौजूद है जिसको आज पूरी दुनिया ताजमहल के नाम से पहचानती है। 

42 एकड़ पर पहला दूर से ही चमकता हुआ यह मकबरा जहां अपने अंदर खूबसूरती के बगीचे सजाए हुए हैं वहीं इसके ऊपर गम और उदासी के कई बादल अभी तक मंडरा रहे हैं। नाजरीन लगभग 400 साल पहले बनाई जाने वाली यह खूबसूरत बिल्डिंग जहां अपने दौर की सबसे बड़ी और सबसे शानदार बिल्डिंग हुआ करती थी वहीं आज इसको दुनिया का सातवां अजूबा भी माना जाता है।

 इस आलीशान स्ट्रक्चर को बनाने में 20000 मजदूरों ने दिन-रात खून पसीना बहाया और वह भी एक या 2 सालों तक नहीं बल्कि पूरे 22 सालों तक अगर आज के दौर में इसकी कीमत का अंदाजा लगाया जाए तो संगमरमर का यह अनमोल मकबरा है। हैरतअंगेज तौर पर 1 बिलियन डॉलर यानी 7000 करोड रूपयों से भी ज्यादा महंगा है क्योंकि इस बिल्डिंग में मुगल आर्किटेक्ट ने अपने हुनर की कई ऐसी निशानियां छोड़ी थी,  जिनकी दुनिया के टॉप इंजीनियर भी आज तक तारीफ करते हैं।

 इस बिल्डिंग को ऐसे डिजाइन किया गया कि जब मेन गेट के पीछे से इसको देखा जाता है तो यह काफी बड़ी लगती है, लेकिन जैसे ही मेन गेट की तरफ बढ़ा जाता है तो ऑटोमेटिकअली इसका साईज छोटा होता जाता है। दिमाग को चकरा देने वाली यह कोई पहली ट्रीक नहीं थी जो मुगल आर्किटेक्ट में इस्तेमाल की हो। इसके इर्द-गिर्द चारों मीनारों को बिल्कुल सीधा खड़ा नहीं किया गया बल्कि यह मीनार बाहर की तरफ थोड़ा झुके हुए हैं क्योंकि अगर इनको सीधा खड़ा किया जाता तो दूर से देखने पर यह अंदर की तरफ झुके हुए लगते जैसा के इन मस्जिदों में आप देख सकते हैं। इन मीनारों को बाहर की तरफ झुकाने का एक और रीजन यह था और वह यह था कि खतरनाक अर्थक्वेक की सूरत में अगर यह मीनार गिरे भी तो यह बाहर की तरफ गिरकर ताजमहल पर एक आज भी ना आने दे। लेकिन आखिर माजरा क्या था कि इसको बनाने वाले किसी सूरत में इस पर एक खराश भी बर्दाश्त नहीं कर सकते थे। ताज महल के वह कौन कौन से रास्ते जिनको 400 साल पहले छुपाने की कोशिश की गई थी और जब उस दौर में कंक्रीट और स्टील ही नहीं हुआ करता था तो आखिर इस आलीशान मकबरे और इस पर मौजूद 40 मीटर ऊंचे डूम को कैसे बनाया गया। यह सब और इससे भी ज्यादा आप जान सकेंगे। आज के इस स्पेशल ब्लोग पोस्ट में ।


 

2.शांहजाह व मुमताज की प्रेम कहानी और ताजमहल निर्माण का इतिहास :-

नाजरीन यह मामला स्टार्ट हुआ था सन 1607 में जब इंडिया और पाकिस्तान के इस क्षेत्र में मुगल एंपायर का होल्ड हुआ करता था। इस दिन मुगल सेहंशाह का सबसे छोटा बेटा जहां सहाब्बुदीन मोहम्मद खुर्रम 15 साल का हो चुका था और उसी की सेलिबरेशन के लिए आगरा फोर्ट में एक आलीशान पार्टी रखी गई थी  खुर्रम!

मुगल शहंशाह को सबसे ज्यादा अधिक प्रिय था। इसी वजह से इसके हर जन्मदिन पर इसको हीरे जवाहरात और सोने से तोला जाता था। यानी जितना वजन शहजादे खुर्रम का होता था, उतना ही खजाना इसके नाम कर दिया जाता था। लेकिन इस जन्मदिन पर कुछ और भी हाथ होने वाला था। मुगल सेहंशाह ने शहजादे खुर्रम की शादी अपने एक वकील की बेटी के साथ कर दिए जिसको मुमताजमहल के नाम से जाना जाता है। मुमताज और खुर्रम को पहले दिन ही एक दूसरे से बेइंतहा मोहब्बत हो चुकी थी और उस वक्त यह किसी को भी मालूम नहीं था कि इस मोहब्बत का बोलबाला हमेशा के लिए रहने वाला है। अगले 10 सालों तक शहजादे ने कई जंगे लड़ी और उनमें भरपूर कामयाबी भी हासिल की। इसी वजह से सेहंशाह ने खुश होकर उनको शाहजहां के लकप से नवाजा जिसका मतलब है दुनिया का बादशाह शाहजहां की टोटल 6 बीवियां थी जो आगरा के फोर्ट मे रहती मे थी। इन 6 मै से शाहजहां सबसे ज्यादा मोहब्बत मुमताज से करते थे और यही वजह थी कि उनका ज्यादातर वक्त मुमताज महल के साथ ही गुजरता था। वक्त तेजी से गुजरता जा रहा था और 4 सालों के बाद यानी 1621 में मुगल सेहंशाह अचानक चले जाते है । शाहजहां जो पहले ही मुग़ल एंपायर में खासा फेमस हो चुका था और जो सेहंशाह का चाहिता बेटा भी था। 1628 में यानी बाप की मौत के 7 सालों बाद उसने शहंशाह की गद्दी संभाली। पूरी मुगलिया सल्तनत अपने नए शहंशाह से बेहद खुश नजर आती थी। यह वह समय था जब मुग़ल एंपायर  पूरे इंडिया पाकिस्तान के साथ साथ अफगानिस्तान के भी कई हिस्सों में मुगलिया सल्तनत का राज हुआ करता था।



3.मुमताज कि मृत्यु व शाहजहां के दुखद जीवन की सुरूआत :-

मुगल एंपायर मे सारे फैसले शाहजहां करता था। जबकि मुमताज महल पीछे रहकर शाहजहां को मशवरे दिया करती थी लेकिन किसी को भी इस बात का इल्म नहीं था कि यह खुशियां थोङे समय में बदलने वाली है। गद्दी संभाले अभी एक ही साल गुजरा था कि एक बार फिर से मुगल एंपायर को दुश्मनों का सामना करना पड़ा। अगले 2  साल जंग चलती रही और शाहजहां को इस जंग में भी भरपूर कामयाबी नसीब हुई। लेकिन शाहजहां अभी इस कामयाबी का जश्न मनाते हैं कि उनको एक  खबर से आगाह किया गया। मुमताज महल जो के शाहजहां के 14 वे बच्चे को जन्म दे रही थी, 

उसकी हालत बिगड़ गई और 17 जून सन 1631 को वह ना चाहते हुए भी इस दुनिया से चली गई पूरी मुगलिया सल्तनत का जशन देखते ही देखते मातम में बदल गया। यह खबर जो शाहजहां पर आग बनकर गिरी थी उसने तो जैसे इनकी दुनिया ही खत्म कर डाली शाहजहां की सबसे पहली मोहब्बत और उनकी। सबसे अधिक प्रिय मुमताज महल इस दुनिया से रुखसत हो चुकी थी। कहा जाता है कि इस गम की परछाई ने शाहजहां को काले अंधेरों में धकेल दिया था। अगले 8 दिनों तक उन्होंने कुछ नहीं खाया और अगले 2 सालों तक ना कोई जश्न नही कीया।



4.मुमताज की आखिरी ख्वाहिश और ताजमहल का निर्माण कार्य :-

मुमताज महल ने मरने से पहले एक आखिरी ख्वाहिश की थी। वह चाहती थी कि उनकी कब्र दुनिया के सबसे खूबसूरत मकबरे में बनाई जाए। इसको और मुमताज महल की आखिरी ख्वाहिश को पूरा करने के लिए शाहजहां ने अपनी सारी दौलत और पूरी जिंदगी वक्फ करने का इरादा कर लिया। मुमताज के गुजरने के 6 माह बाद यानी 1632 में ही ताजमहल की कंस्ट्रक्शन का काम शुरू कर दिया गया। करीब 20,000 से भी ज्यादा मजदूर पत्थर तरास और कारीगरों को पूरी सल्तनत से इकट्ठा किया गया। लश्करो के लश्कर शाहजहां के हुकुम पर आगरा बुलवा लिए गए थे क्योंकि मुमताज की कब्र यमुना रिवर के बराबर में मौजूद थी। इसी वजह से इस जगह पर दुनिया की सबसे खूबसूरत बिल्डिंग बनाना काफी मुश्किल था तथा रिवर के किनारे जमीन काफी सोप्ट होती थी और अगर यहां खुदाई का काम किया गया तो पानी का भाव ताजमहल की फाउंडेशन को भी नुकसान पहुंचा सकता था। इस मसले से निपटने के लिए मुगल इंजीनियर ने जहां तक हो सके पहले जमीन के अंदर कई कुएं खुदवा ना शुरू किये। मजदूर यह कुए तब तक खोदते रहते जब तक शुष्क जमीन नजर ना आ जाती थी। इनको को पत्थरों और गारे से भरा गया और फिर उसके ऊपर पत्थरों के बड़े-बड़े कॉलम खड़े किए गए । इस सारे काम को अंजाम देने के लिए मजदूरों के साथ-साथ हाथियों की एक बहुत बड़ी फौज को भी इस्तेमाल किया गया। 



5.ताजमहल की नींव के बाद ताजमहल की मुख्य बिल्डिंग डिजाइन का कार्य :-

मुगल इंजीनियर की यह ट्रिक काम कर चुकी थी और अब एक ऐसी मजबूत फाउंडेशन तैयार थी जो नरम जमीन पर भी फौलाद बनकर खड़ी थी। फाउंडेशन के बाद अब बारी थी। एक ऐसे बिल्डिंग डिजाइन की जो आज से पहले कभी ना देखा एक ऐसा डिजाइन जो पिछले सारे रिकॉर्ड तोड़ डाले। ताजमहल के डिजाइन का आईडिया शाहजहां ने अपने बाप दादा के मकबरे से लिया था बाप के मकबरे से मिनारो का आईडिया लिया गया। दादा के मकबरे से बिल्डिंग कोर का आईडिया लिया और अपने अंकल के मकबरे से डुम का आईडिया लिया था और जब इन सब को कंबाइन किया गया तो एक शानदार और आलीशान डिजाइन उभर कर सामने आया। बिल्डिंग के स्ट्रक्चर को बनाने के लिए लाखों नहीं करोड़ों इन्टे मौके पर बेक  की गई। यह सब इतना आसान नहीं था और इसमें  लाखो पैसे भी बहाए जा रहे थे। हर गुजरते दिन साहिए  खजाना तेजी से खाली होता जा रहा था। लेकिन शाहजहां को किसी चीज की परवाह नहीं थी। बस उनको यह काम हर कीमत पर कंप्लीट करना था। कहा जाता है कि ताजमहल की कंस्ट्रक्शन में इतने ज्यादा लोग लगाए गए थे कि उनकी वजह से आसपास के इलाकों में खाना-पीना खत्म हो गया था। 20000 मजदूरों और कारीगरों की डिमांड पूरी करने के लिए शाहजहां ने आसपास के तमाम इलाकों से अनाज आगरा मंगा लिया था। कई सालों की मेहनत के बाद। बिल्डिंग का स्ट्रक्चर कंप्लीट हो चुका था और अब बारी थी इसको संगमरमर से सजाने की यह संगमरमर आगरा से 400 किलोमीटर दूर राजस्थान से मंगाया जाना था क्योंकि यहां का मकराना मार्बल आज तक दुनिया का फाइनेंस मार्बल माना जाता है। शाहजहां ने ताजमहल के लिए पूरा मकराना मार्बल रिजर्व कर लिया था यानी जब तक ताजमहल की डिमांड पूरी नहीं हो पाएगी। तब तक किसी को भी यह मार्बल खरीदने की इजाजत नहीं थी। एक हजार हाथियों की मदद से हजारों टन वजनी मार्बल राजस्थान से आगरा मंगाया गया। ताजमहल का यह खूबसूरत डूम इतना बड़ा है कि इसका अंदाजा सिर्फ आंखों से देख कर ही लगाया जा सकता है। आजकल इस तरह के डूम बड़ी आसानी से  स्टिल स्टरक्चर पर बनाए जा सकते हैं लेकिन 400 साल पहले 40 मीटर ऊंचे डूम को बनाने में उनके पास सिर्फ पत्थरों का ही सहारा था। इस डूम को बनाने में मुगल इंजीनियर ने जो स्ट्रेस कैल्कुलेशन की थी उसकी आज के इंजीनियर  बहुत तारीफ करते हैं। ताजमहल की फिनिशिंग के लिए इसको पीटरा डोरा यहां प्रचिनकारी से डेकोरेट किया जाना था। (पीटराडूरा एक ऐसी कलाकारी को कहा जाता है जिसमें एक कीमती पत्थर को मार्बल के अंदर तराश कर लगाया जाता है। मार्बल को बड़ी महारात और बारीकी से कीमती पत्थर की सेप(साइज) के हिसाब से तराशा जाता है और फिर उस में पत्थर को गल्यू के जरिए चिपकाया जाता है)

ताजमहल पर इस्तेमाल होने वाली गल्यू कोई आम गल्यू नहीं थी। काफी रिसर्च और लिबर्टी टेस्ट के बाद मालूम पड़ा कि यह गल्यू हीरा लेमन जूस और संगमरमर पाउडर को मिलाकर बनाई जाती थी। वही  गल्यु आज भी ताजमहल के रंग में चलन के लिए इस्तेमाल की जाती है। 



6.ताजमहल के रंग की खासियत :-

ताजमहल की खास बातों में एक बात यह भी है कि यह दिन में 4 मर्तबा अपने रंग बदलता है। सूरज निकलने से पहले यह बिल्कुल ब्लैक शेड देता है। सूरज निकलने के बाद यह लाइट पिला और पिंक शेड देता है जबकि दोपहर के वक्त ताजमहल की खूबसूरती का नया रूप देखने को मिलता है। नीले आसमान पर जैसे मोती चमक रहा हो और संसेट के वक्त यह पूरी बिल्डिंग गोल्डन कलर की दिखाई देती है। पूरे 22 सालों के बाद सन् 1654 में ताजमहल की कंस्ट्रक्शन का काम मुकम्मल कर लिया गया। शाहजहां अपनी बेगम की याद में दुनिया का सबसे खूबसूरत मकबरा बनाने में कामयाब हो चुका था। शाहजहां ने इस आलीशान इमारत का नाम अपनी पसंदीदा बीवी की याद में ही रखा। मुमताज महल से इसका नाम ताजमहल रख दिया गया। हर साल शाहजहां मुमताज की बरसी पर यमुना रिवर के जरिए ताजमहल पर जाया करते थे। यह ताजमहल की ऐसी एंट्रेंस थी जिसे सिर्फ शाही खानदान के लिए ही बनाया गया था। इस एंट्रेंस की दीवारों पर दिलकश निकासी का काम किया गया था जो शायद सिर्फ साही आंखों के देखने के लिए ही कीया गया था।


7.ताजमहल का पूर्ण होकर भी शाहजहां के लिए दुखो की सुरूआत :-



शाहजहां का यह महंगा तरीन प्रोजेक्ट कंप्लीट तो हो चुका था

लेकिन इसने मुगलिया सल्तनत को तबाही के किनारे पर ला खड़ा किया। 4 सालों के बाद यानी 1658 में शाहजहां और मुमताज के अपने ही बेटे ने शाही तक्त उलट दिया और खुद मुगल एंपायर का शहंशाह बन गया था। शाहजहां जो पिछले 30 सालों से इस तक्त पर राज कर रहे थे, उसको कैदी बनाकर आगरा फोर्ट मे हीं बंद कर दिया था  सिर्फ एक फैसिलिटी ऐसी थी जो शाहजहां को दी गई और वह यह थी कि जिस कमरे में उसको बंद किया था,  उसकी खिड़की से वह ताजमहल को देख सकते थे। 8 साल कैद में रहने के बाद 74 ईयर की एज में शाहजहां भी इस दुनिया को अलविदा कर गए। शाहजहां का अब मुमताज से दोबारा मिलने का वक्त आ चुका था और उनको ताजमहल मे हीं दफन कर दिया गया।


उम्मीद है कि यह दि नॉलेज स्पेक्ट्रम की ताजमहल से रिलेटेड और सांसारिक व मुमताज के प्रेम की यह कहानी जो हमने आपको इस पोस्ट के जरिए साझा की है आशा करता हूं कि यह पोस्ट आपके लिए जानकारी भरी होगी और आपको ताजमहल के बारे में कई जानकारी मिली होगी यह पोस्ट अच्छी लगी है तो कमेंट में जरूर बताएं और हमारे ब्लॉक पोस्ट के साथ ऐसे ही बने रहे ऐसे ही पोस्ट देखने के लिए.........


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